बोल पड़ी मंदिर की देवी, मंदिर में क्यों आया रे
बोल पड़ी मंदिर की देवी, मंदिर में क्यों आया रे
घर बैठी तेरी भूखी माता, क्यों ना भोग लगाया रे
मेरी कढ़ाई देसी घी की, मां ने सूखी रोटी रे
मां ने मां तू समझे कोन्या, क्यूं तेरी किस्मत फूटी रे
नजर मिलाने छोड़ दई, जिनै नजर का टीका लाया रे
घर बैठी तेरी भूखी माता, क्यों ना भोग लगाया रे
जगमग ज्योत जगावण आले, मां के पास अंधेरा रे
वा भी मां सै मैं भी मां सूं, क्यूं तन्ने ना बेरा रे
अपनी मां ने दमड़ी ना देता, क्यों मांगण आया माया रे
घर बैठी तेरी भूखी माता, क्यों ना भोग लगाया रे
कड़वे कड़वे बोल बोल के, नरम कालजा छोलै रे
एक सुनुं ना मैं तेरी, तू कौन से मुंह ते बोले रे
मेरी नजर ते दूर चला जा, क्यूं तन्ने मुख दिखलाया रे
मां ममता की मूरत होवे, नहीं समझ तेरे आया रे
घर बैठी तेरी भूखी माता, क्यूं ना भोग लगाया रे
सुनो ल्यो भक्तों मां की वाणी, बात सभी को खास कहूं
जो भी मां की सेवा करता, मैं तो उसके पास रहूं
वीर भान के ठोकर लागी, फिर शरण में आया रे
घर बैठी तेरी भूखी माता, क्यूं ना भोग लगाया रे
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